व्यावसायिक पूर्वानुमान की अवधारणाओं से यह स्पष्ट हो चुका है कि व्यावसायिक पूर्वानुमान के लिए व्यवसाय से सम्बन्धित सभी प्रकार के आंकड़ों से सम्बन्धित सभी तरह के आंकड़ों में होने वाले भूतकालीन एवं वर्तमान परिवर्तनों की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। पूर्वानुमान सिर्फ अन्दाज पर आधारित न होकर सांख्यिकी विश्लेषण पर आधारित होते हैं। आधुनिक सांख्यिकी में पूर्वानुमान की कई वैज्ञानिक विधियों का विकास हुआ है। व्यावसायिक पूर्वानुमान की प्रमुख वैज्ञानिक विधियाँ निम्नलिखित
(1) व्यवसाय मापक यंत्र व्यापार चक्र की विभिन्न क्रियाओं के अध्ययन तथा विश्लेषण के लिए व्यवसाय सूचकांकों की रचना करनी पड़ती है। इन सूचकांकों को व्यवसाय मापक यन्त्र कहते हैं। ये ठीक उसी तरह व्यावसायिक उच्चावचनों का अनुमान लगाते हैं जिस तरह वायु मापक यन्त्र मौसम का पूर्वानुमान लगाते हैं।
वास्तव में, ये बाह्य जगत में हो रहे परिवर्तनों की सूचना देने
वाले बाह्य उपकरण हैं जो व्यवसायी को वृहत् स्तर की गतिविधियों से परिचित कराते हैं। राष्ट्रीय आय, कृषि उत्पादन, थोक मूल्य, औद्योगिक उत्पादन आदि के सूचकांक व्यवसायी को अपने उत्पादन, विक्रय, सकते हैं।
लागत, लाभ-हानि आदि के पूर्वानुमान में बहुत ज्यादा मदद प्रदान कर इनकी मदद से व्यवसाय विस्तार पूँजी निवेश, बाजार-विकास आदि कई समस्याओं का उचित समाधान किया जा सकता है, लेकिन व्यवसाय मापक यन्त्र की भी कुछ सीमाएं होती है। इसमें वे सारे दोष पाये जाते हैं जो सूचकांकों के निष्कर्ष तथा प्रयोग में पाये जाते हैं।
(2) बाह्यगणन- यह व्यावसायिक पूर्वानुमान की सबसे सरल विधि है। यह कई परिस्थितियों में उपयोगी भी रहती है। यह एक गणितीय विधि है। इस विधि के द्वारा भविष्य के किसी मूल्य का पूर्वानुमान किया जा सकता है। इस तरह प्राप्त मूल्य किसी पद का सर्वाधिक सम्भावित मूल्य होता है इसलिए इसमें पूर्ण परिशुद्धता की आशा नहीं की जा सकती है। फिर भी इस विधि की परिशुद्धता इस बात पर निर्भर करती है कि दिए गए समंकों में उच्चावचन तथा समकों को प्रभावित करने वाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं का ज्ञान अनुसन्धानकर्ता को किस सीमा तक है। बाह्यगणन की विधियों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-(i) बिन्दुरेखीय
विधि, (ii) बीजगणितीय विधि।
(i) बिन्दुरेखीय विधि-बिन्दुरेखीय विधि बाह्यगणन की सबसे सरल विधि है। इस विधि में स्वतन्त्र चर (जैसे समय या वर्ग सीमाएं) X-अक्ष पर एवं आश्रित चर को Y -अक्ष पर प्लाट करके प्राप्त बिन्दुओं को मिला देने
से वक्र उपलब्ध हो जाता है। फिर इस वक्र के उच्चावचन तथा गति का अध्ययन करके उसे पूर्व-क्रम के अनुसार आगे बढ़ा दिया जाता है।
तत्पश्चात् जिस समय के अज्ञात मूल्य को ज्ञात करना होता है X-अक्ष के उस बिन्दु से एक लम्बवत रेखा खींचते हैं एवं वह लम्ब जिस बिन्दु पर वक्र को काटता है उस बिन्दु से Y-अक्ष पर लम्ब खींचते हैं। Y-अक्ष पर इस तरह प्राप्त कटान बिन्दु ही अज्ञात मूल्य का संकेत करता है।
(ii) वीजगणितीय विधियाँ-बाह्यगणन हेतु निम्न बीजगणितीय विधियाँ हैं-
उपर्युक्त विधियों में से किसी भी विधि का प्रयोग कर भविष्य हेतु व्यावसायिक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इन विधियों द्वारा गणना थोड़ी कठिन होती है।
(3) उपनति प्रक्षेपण विधि-हम जानते हैं कि आर्थिक तथा व्यावसायिक क्षेत्रों में समय के साथ-साथ परिवर्तन की स्वाभाविक प्रवृत्ति पाई जाती है।
अतः इस विधि की मदद से भूतकाल की प्रवृत्ति के आधार पर भविष्य हेतु अनुमान लगाया जा सकता है। इस विधि में निम्नलिखित उपनति प्रचलित है-
(a) रेखीय उपनतिरेखीय उपनति का समीकरण है-
Y =a + bX
यह इस मान्यता पर आधारित है कि आश्रित चर (Y) प्रत्येक वर्ष एकसमान अथवा स्थिर राशि से घटता-बढ़ता है। यहाँ दो अचर a तथा b का मान ज्ञात करने के लिए न्यूनतम वर्ग विधि का प्रयोग सर्वश्रेष्ठ है।
इसके लिए दो प्रसामान्य समीकरण हैं-
●द्विपद विस्तार विधि
●न्यूटन प्रगामी अन्तर विधि
●लैग्रेंज की विधि है
इन दोनों समीकरणों को हल कर a तथा b का मान ज्ञात कर लेंगे। फिर भविष्य हेतु उपनति समीकरण Y = a + bX द्वारा अनुमान आसानी से लग सकता है।
(b) अर्द्ध-लघुगणकीय उपनति यह विधि इस मान्यता पर आधारित है कि उपनति प्रत्येक वर्ष स्थिर प्रतिशत से परिवर्तित होता है। Y-अक्ष पर लघुगणकीय मापदण्ड चित्रण किया जाता है। स्थिर प्रतिशत से परिवर्तन होने पर अर्द्ध-लघुगणकीय उपनति एक सरल रेखा के रूप में
होती है।
(c) चर घातांकी उपनति-इस विधि के अनुसार आश्रित चर- मूल्य में हर वृद्धि पिछले मूल्य के एक स्थिर प्रतिशत (100 से कम) के रूप में होती है। यह निम्न समीकरण पर आधारित है-
(d) वृद्धि घातीय उपनति यह विधि निम्न समीकरण पर आधारित यह विधि कठिन है।