स्फीति का अर्थ एवं प्रकार

नव-क्लासिकियों तथा शिकागो विश्वविद्यालय में उसके अनुयायियों की दृष्टि में स्फीति मूलरूप से एक मौद्रिक घटना है। फ्रीडमैन के शब्दों में, “स्फीति सदैव तथा सर्वत्र एक मौद्रिक घटना होती है, और उसे उत्पादन की अपेक्षा सिर्फ मुद्रा का परिमाण तेजी से बढ़ाकर लाया जा सकता है।” परन्तु अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत नहीं हैं कि सिर्फ मुद्रा-पूर्ति ही स्फीति का कारण होती है। जैसा कि हिक्स ने लक्ष्य किया है, “हमारी वर्तमान कठिनाइयाँ सिर्फ मौद्रिक प्रकृति की नहीं हैं।” इसलिए अर्थशास्त्री स्फीति को कीमतों में होने वाली निरन्तर वृद्धि के रूप में परिभाषित करते हैं। जानसन के अनुसार कीमतों में निरन्तर वृद्धि स्फीति

है। ब्रूमैन इसे “सामान्य कीमत स्तर में निरन्तर होने वाली वृद्धि के रूप में परिभाषित करता है। शपीरो की परिभाषा इससे मिलती-जुलती है। उसके अनुसार, “कीमतों के सामान्य स्तर में होने वाली निरन्तर एवं अत्यधिक

वृद्धि है।” डर्नबर्न तथा मैक्डूगल की परिभाषा अपेक्षाकृत ज्यादा स्पष्ट है। वे लिखते हैं, “यह शब्द प्राय: कीमतों में होती रहने वाली वृद्धि को निर्दिष्ट करता है जिसे किसी सूचक द्वारा मापा जाता है जैसे उपभोक्ता कीमत सूचकांक पर

यह समझ लेना जरूरी है कि कीमतों में निरन्तर वृद्धि के विविध आकार हो सकते हैं। इसलिए स्फीति को विभिन्न नाम दिए गए हैं जो कीमतों में वृद्धि की दर पर निर्भर करते हैं।

1. मंद या रेंगती स्फीति-जब कीमतों में वृद्धि बहुत धीरे-धीरे होती है, तो इसे मंद स्फीति कहते हैं। गति के शब्दों में अगर कीमतों में निरन्तर वृद्धि 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष से कम दर से होती है तो उसे मंद स्फीति कहा जाता है। कीमतों में ऐसी वृद्धि आर्थिक वृद्धि हेतु सुरक्षित तथा आवश्यक मानी गई है।

2. चलती हुई स्फीति- जब कीमतें साधारण रूप से बढ़ती हैं तथा वार्षिक स्फीति दर एक अंक की होती है। दूसरे शब्दों में जब कीमतों में वृद्धि की दर 3 से 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष के बीच अथवा 10 प्रतिशत से कम तो वह चलती हुई स्फीति कहलाती है। इस दर पर स्फीति सरकार हेतु खतरे की घंटी होती है ताकि इस दौड़ती हुई स्फीति में प्रवेश करने से पहले नियन्त्रित कर लिया जाये।

3. दौड़ती हुई स्फीति – जब कीमतें तीव्रता से 10 से 20 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती हैं तो उसे दौड़ती हुई स्फीति कहते हैं। ऐसी स्फीति गरीब तथा मध्य वर्गों पर बुरा प्रभाव डालती है। इसके नियंत्रणहेतु शक्तिशाली मौद्रिक एवं फिस्कल उपाय अपनाने की आवश्यकता होती है, नहीं तो यह अतिस्फीति की तरफ ले जाती है।

4. अतिस्फीति- जब कीमतें दो या तीन अंक की दरों पर बहुत तेजी से बढ़ती हैं अर्थात् 20 से 100 प्रतिवर्ष के बीच या उससे भी अधिक हो तो इसे सामान्यतः भागती हुई अथवा द्रुत स्फीति कहा जाता है। इसे कई अर्थशास्त्रियों द्वारा अतिस्फीति भी कहा जाता है। वास्तव में अतिस्फीति वह स्थिति है जब स्फीति की दर मापी नहीं जा सकती तथा पूर्णरूप से अनियन्त्रित होती है। कीमतें प्रत्येक दिन कई बार बढ़ती है। ऐसी स्थिति मौद्रिक प्रणाली की पूर्ण विफलता लाती है, क्योंकि मुद्रा क्रय शक्ति में निरन्तर गिरावट होती है। कीमत-स्तर में लगभग 30 प्रतिशत वृद्धि हुई है। वक्र W चलती हुई स्फीति को व्यक्त करता है जब दस वर्ष की अवधि के दौरान कीमतों में 50 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई । वक्र R तीव्र स्फीति को प्रदर्शित करता है जब 10 वर्षों में कीमतों में लगभग 100 प्रतिशत वृद्धि हुई। ऊपर की ओर ढाल वाला वक्र H अतिस्फीति के मार्ग को प्रदर्शित करता है जब एक वर्ष से कम अवधि में ही कीमतें 120 प्रतिशत बढ़ गई।

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