(1) प्रो. हा का शुद्ध मौद्रिक सिद्धान्त : प्रो. हार्ट की राय यह
थी कि व्यापार चक्र शुद्ध रूप से एक मौद्रिक समस्या है। कई स्फीति तथा कई अपस्फीति की स्थितियों व्यावसायिक गतिविधियों में उच्चावचनों को कारित करती है। मुद्रा की मात्रा में एक परिवर्तन व्यापार चक्रों को कारित
करता है। जब फेश मुद्रा के निर्गम के कारण या बैंक साख घर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि के कारण या मुद्रा की गति में वृद्धि के कारण मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है, तब समृद्धता की दशा प्रारंभ होती है, क्योंकि मुद्रा की मात्रा में वृद्धि के कारण, उपभोक्ता खर्च करने के लिए ज्यादा मुद्रा पाते हैं।
उनकी क्रय शक्ति बढ़ती है तथा वस्तुओं तथा सेवाओं
मूल्य बढ़ना शुरू हो जाते हैं। यह व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को उनके संस्थान में उनके निवेश को बढ़ाने को प्रोत्साहित करता है। वे बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों की उदार साख नीति का लाभ लेते हैं। वे और ऋण लेते हैं और उनकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए उनके संस्थानों में निवेश करते हैं। यह उत्पादन की मात्रा को बढ़ा देता है। उत्पादन की लागत बढ़ जाती है क्योंकि उत्पादन के कारकों के मूल्य उनकी ज्यादा ऊंची माँग के
कारण बढ़ जाते हैं। उत्पादन के कारकों की क्रय शक्ति बढ़ जाती है तथा वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग और बढ़ जाती है, यह पुनः उत्पादन क्षमता में वृद्धि को प्रोत्साहित करती है। अतः मुद्रा की मात्रा में वृद्धि से उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ती है जो उत्पादन की मात्रा में वृद्धि को प्रोत्साहित करती है। ये सभी कारक एक साथ समृद्धता को वातावरण को निर्मित करने में सहायता करते हैं। दूसरी तरफ मुद्रा का मात्रा में कमी मंदी तथा अवसाद की दशा की कारित करते है। यह या तो प्रचलन से मुद्रा के हटाए जाने के कारण या साख के सकुचन के कारण या मुद्रा की गति में
कमी के कारण हो सकता है। इसका अर्थ उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति में कमी का होता है। अतः वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग कम होती है तथा मूल्य कम होना शुरू हो जाते है। यह व्यवसायियों तथा उद्योगपतियों को
उत्पादन की मात्रा को कम करने तथा उनके निवेशों को निकालने को बाध्य करता है। बेक्स नए ऋण तथा अग्रिम स्वीकृत नहीं करते तथा वर्तमान ऋणों तथा अग्रिमों को भी विदड़ा करना प्रारंभ कर देते हैं। वे उनके ऋणों तथा अग्रिमों पर ब्याज की दर बढ़ा देते हैं जो व्यवसायियों
तथा उद्योगपतियों के मध्य निराशा तथा नैराश्य की भावना कारित करता है। वे उत्पादन की मात्रा को घटा देते हैं तथा उनके निवेशों को हटाना शुरू कर देते हैं। वे उनके उत्पाद के पूरे स्टॉक को जल्दी से जल्दी बेचने
का प्रयत्न करते हैं। अतः वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य और गिर जाते हैं। ये सब कारक एक साथ अवसाद की दशा को निर्मित करते हैं।
शुद्ध मौद्रिक सिद्धान्त की आलोचनाएं :
1.यह सिर्फ मौद्रिक कारकों पर विचार करता है, जबकि तथ्य यह है कि मौद्रिक तथा गैर-मौद्रिक दोनों कारक व्यापार चक्रों के लिए जिम्मेदार होते हैं।
2.यह मानता है कि निवेश निर्णय सिर्फ साख सुविधाओं तथा ब्याज की दर द्वारा प्रभावित होते हैं लेकिन तथ्य यह है कि भविष्य में मूल्य के परिवर्तन की उम्मीदें भी निवेश निर्णयों को काफी सीमा तक प्रभावित करती है।
3.यह पूँजी की उत्पादकता की अवहेलना करता है।
प्रो. हाट्रे ने व्यापार चक्रों के प्रवाह के परिवर्तनों का विश्लेषण नहीं किया है।
(2) आधिक्य-निवेश सिद्धान्त इसे प्रोफेसर हेयक ने प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार व्यापार चक्र ब्याज की प्राकृतिक दर तथा ब्याज की वास्तविक दर के बीच में अंतर के कारण उत्पन्न होते हैं जो वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि या कमी कारित करते हैं। यह
सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि बचतें तथा निवेश हमेशा बराबर होते हैं। यह सिर्फ तब संभव हो सकता है जब पूँजी सिर्फ बचतों के द्वारा निर्मित तथा उत्पन्न होता है। व्यवहार में बैंकें भी साख को निर्मित करती हैं। उनका लक्ष्य अधिकतम लाभ को कमाना होता है। अतः वे ब्याज की
दर को कम कर देते हैं ताकि व्यवसायी तथा उद्योगपति उनके व्यवसाय तथा औद्योगिक संस्थानों के लिए ज्यादा से ज्यादा ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित हो सकें। व्यावसायिक तथा औद्योगिक संस्थानों में निवेश बढ़ना शुरू होता है जो इसकी बारी में उत्पादन, रोजगार, मजदूरियों तथा
वेतनों आदि के स्तर को बढ़ा देता है। उत्पादन के कारकों के मूल्यों में वृद्धि के कारण, उनकी क्रय शक्ति बढ़ती है तथा वे पहले की तुलना में ज्यादा वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग करते हैं। इससे वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है। ये सभी कारक एक साथ समृद्धता क
वातावरण को निर्मित करते हैं। बैंक एक निश्चित बिन्दु के बाद साख के विस्तार की नीति को स्थगित कर देते हैं। वे ब्याज की दर को बढ़ाते हैं।
यह व्यवसायियों तथा उद्योगपतियों को उनके निवेशों को निकालने के लिए बाध्य करता है। बैंक्स नए ऋण तथा अग्रिम अनुमोदित नहीं करते वे उनके वर्तमान ऋणों तथा अग्रिमों को निकालना शुरू कर देते हैं। अतः उत्पादन की मात्रा कम हो जाती है। उत्पादन के कारकों के मूल्य भी कम हो जाते हैं जो उनकी क्रय शक्ति को सीमित करता है।