व्यावसायिक पूर्वानुमान मुख्य रूप से दो मान्यताओं पर आधारित होते हैं-
1.आंकड़ों में एक नियमितता होनी चाहिए अर्थात् आंकड़ों में तीव्र या आकस्मिक रूप से पुनः घटित होने चाहिए।
2.भूतकालीन आर्थिक घटनाएं नियमित रूप से पुनः घटित होनी चाहिए।
व्यावसायिक पूर्वानुमान के सिद्धान्त
पुराने समय में व्यावसायिक पूर्वानुमान केवल अनुभव तथा
कल्पनाओं के आधार पर लगाये जाते थे लेकिन वर्तमान समय में यह कार्य वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर किया जाता है। मुख्य रूप से निम्न बिन्दुओं पर व्यावसायिक पूर्वानुमान आधारित होते हैं-
(1) क्रिया प्रतिक्रिया सिद्धान्त- यह सिद्धान्त भौतिकशास्त्र से सम्बन्धित न्यूटन के गति के तृतीय सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “प्रत्येक क्रिया के सदैव बराबर तथा विपरीत प्रतिक्रिया होती है।” भौतिकशास्त्र के इस सिद्धान्त के अनुसार आर्थिक
क्षेत्र में भी हर घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरी घटना देखते हैं।
व्यावसायिक क्षेत्र में भी अगर कोई परिवर्तन होता है तो उसकी कोई न कोई प्रतिक्रिया अवश्य होगी। इस तरह क्रिया और प्रतिक्रिया को ध्यान में रखकर हम व्यावसायिक पूर्वानुमान लगा सकते हैं। यह पूर्वानुमान बुद्धिमत्तापूर्ण
तर्कों पर आधारित होता है अतः सत्यता के अधिक निकट होता है।उदाहरण के लिए अगर टी.वी. का मूल्य एक प्रसामान्य स्तर तक बढ़ता है तो बाद में उसका उत्पादन भी बढ़ता है तो बाद में उसका उत्पादन भी बढ़ता है। इससे उसकी पूर्ति भी बढ़ती है। परिणामस्वरूप
उसका मूल्य घटने लगेगा। इस प्रकार के पूर्वानुमान में इस प्रसामान्य स्तर स्थिर नहीं होता है। यह परिवर्तनशील होता है।
(2) काल विलम्बना अथवा कालक्रम सिद्धान्त इस सिद्धानत के अनुसार व्यावसायिक परिवर्तन एक साथ न होकर एक निश्चित अनुक्रम में होते हैं। दूसरे शब्दों में विभिन्न व्यावसायिक परिवर्तन एक के बाद एक
क्रमशः घटित होते हैं। अर्थात् हम कह सकते हैं कि एक घटना का
प्रभाव होने में कुछ समय लगता है। उदाहरण के लिए रेनाल्ड पेन कम्पनी अगर अपने पेन के विज्ञापन पर कुछ धन खर्च करती है तो कुछ समय बाद पेन बिक्री में वृद्धि अवश्य दिखाई देगी।
(3) प्रतिकार विश्लेषण सिद्धान्त लोग कहते हैं कि इतिहास
अपने आपको दुहराता है पर यह सिद्धान्त इसके विपरीत है। इस सिद्धान्त के अनुसार इतिहास अपने आपको नहीं दुहराता। अर्थात् विगत इतिहास में जो घटनाएं हुई हैं, जरूरी नहीं है कि उनको पुनरावृत्ति हो। सब कुछ वर्तमान स्थितियों पर ही निर्भर करता है। वर्तमान का अध्ययन कर व्यावसायिक पूर्वानुमान लगाया जाता है। भूतकालीन परिस्थितियों पर विचार नहीं किया जाता है।
(4) आर्थिक लय सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुयायी यह मानते हैं कि आर्थिक घटनाएं एक लयबद्ध क्रम में घटित होती है। यहाँ व्यावसायिक पूर्वानुमान कालश्रेणी के विश्लेषण पर आधारित होता है। दीर्घकालीन प्रवृत्ति का अनुमान लगाने हेतु यह सिद्धान्त उपयुक्त है।
(5) विशिष्ट ऐतिहासिक सादृश्य सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुयायियों का मानना है कि इतिहास की बार बार पुनरावृत्ति होती है। जिन परिस्थितियों में भूतकालीन घटनाएं हुई हैं वर्तमान में वैसी ही परिस्थितियाँ होने पर भविष्य में भूतकाल वाली घटनाएं घट सकती हैं। व्यापार चक्रों की दशा में यह सिद्धान्त उपयुक्त होता है।