किसी भावी निश्चित अवधि के लिए वस्तु की मांग अथवा बिक्री का पूर्वानुमान लगाना ही माँग पूर्वानुमान कहलाता है। दूसरे शब्दों में, एक फर्म की भावी विक्रय योजना के अन्तर्गत भविष्य की एक निश्चित अवधि के लिए सम्भावित माँग या बिक्री का अनुमान लगाना ही माँग पूर्वानुमान कहलाता है।
केण्डिफ तथा स्टिल के अनुसार, “एक प्रस्तावित विपणन
योजना के अन्तर्गत भावी एवं अनियन्त्रणीय एवं प्रतिस्पर्द्धात्मक शक्तियों का अनुमान लगाते हुए किसी विशिष्ट भावी अवधि के लिए बिक्री का अनुमान लगाना ही विक्रय पूर्वानुमान है।”
विलियम लेजर के अनुसार, “विक्रय पूर्वानुमान एकीकृत नियोजन का केन्द्र है।”
फिलिप कोटलर के अनुसार, “कम्पनी के विक्रय पूर्वानुमान का आशय एक चुनी हुई विपणन योजना के आधार पर तथा वातावरण सम्बन्धी कल्पित दशाओं के अन्तर्गत कम्पनी की बिक्री के अनुमानित स्तर से है। “
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि किसी भावी अवधि हेतु सांख्यिकीय विधियों तथा सूचनाओं का प्रयोग करके किसी वस्तु की कुल बिक्री की मात्रा या मूल्य का अनुमान लगाना हो माँग पूर्वानुमान कहलाता है।
1.काल-श्रेणी विश्लेषण- जब पिछले कई वर्षों से सम्बन्धित
स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो तो काल-श्रेणी विश्लेषण विधि द्वारा व्यावसायिक पूर्वानुमान किया जा सकता है। इस विधि में उपनति, मौसमी परिवर्तनों तथा चक्रीय विचरणों के विश्लेषण से शुद्ध पूर्वानुमान सम्भव हो सकते है।
इस विधि में पूर्वानुमान करने हेतु काल-श्रेणी के विभिन्न संघटकों का संयोजन करना होता है।
2.प्रतीगमन विश्लेषण-व्यावसायिक आंकड़ों के पूर्वानुमान में प्रतीगमन विश्लेषण बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है। इसके द्वारा हम विभिन्न चरों के पारस्परिक सम्बन्ध की प्रकृति तथा मात्रा का मापन करते
हैं। यह गुण हमें पूर्वानुमान लगाने की क्षमता प्रदान करता है। इस विधि के द्वारा हम स्वतन्त्र चर के औसत मूल्य के संगत आश्रित चर का सम्भाव्य मूल्य ज्ञात कर सकते हैं अतः स्पष्ट है कि प्रतिगमन विश्लेषण पूर्वानुमान
करने का प्रमुख सांख्यिकीय उपकरण है। जैसे विज्ञापन व्यय (X) एवं विक्रय (Y) के प्रतीपगमन समीकरण से किसी निश्चित विज्ञापन व्यय से सम्बन्धित विक्रय तथा प्रदत्त विक्रय से सम्बद्ध सम्भाव्य विज्ञापन व्यव
का पूर्वानुमान लगा सकते हैं।
3.आधुनिक अर्थमितीय विधि-अर्थमितीय का अभिप्राय आर्थिक सिद्धान्तों के सत्यापन के वास्ते आर्थिक आंकड़ों पर गणितीय अर्थशास्त्र सिद्धान्तों के सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग से है। इस विधि का प्रयोग विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से होने लगा है। इस विधि के
अनुसार अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित चर मूल्यों के आधार पर कई द्विपद समीकरणों की मदद से अर्थव्यवस्था का विकास मॉडल तैयार किया जाता है। इस मॉडल की मदद से हम व्यवसाय की भावी
गतिविधियों का प्रक्षेपण कर सकते हैं। पूर्वानुमान की यह विधि कठिन है। गणना को सरल करने हेतु हम आधुनिक विद्युत संचालित कम्प्यूटरों का प्रयोग करते हैं।
4 मत सर्वेक्षण-इस विधि के अन्तर्गत विषय से सम्बन्धित
विषय विशेषज्ञों की महत्त्वपूर्ण राय ली जाती है। उनकी राय के आधार पर ही पूर्वानुमान लगाते हैं। व्यापारियों, उद्योगपतियों, प्रबन्धकों तथा उपभोक्ताओं
के मत पूर्वानुमान में सहायक होते हैं कम्प्यूटर नेटवर्क एवं इन्टरनेट की वजह से इस विधि का प्रयोग और प्रसार अधिक होने लगा है। मत सर्वेक्षण दो तरह का होता है-
(a) समष्टि सर्वेक्षण-इस विधि के अन्तर्गत समष्टि की हर इकाई के बारे में सूचना प्राप्त करनी होती है। इस प्रणाली का सर्वोत्तम उदाहरण जनगणना, उत्पादन सगणना आदि है। यदि अनुसन्धान क्षेत्र विस्तृत है तो इस विधि द्वारा मत सर्वेक्षण अत्यन्त कठिन हो जाता है। इसके द्वारा
ज्यादा विश्वसनीय आंकड़े प्राप्त होते हैं।
(b) प्रतिदर्श सर्वेक्षण-सम्पूर्ण समष्टि के बारे में जानकारी प्राप्त करने में समय व धन अधिक लगने के कारण या समष्टि की प्रकृति के कारण समष्टि सर्वेक्षण के स्थान पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण अधिक उपयुक्त रहता है। इसमें जरूरी है कि प्रतिदर्श समष्टि का हो तभी परिणाम परिशुद्ध प्राप्त होंगे।