कीमत पृथक्करण के कुछ महत्वपूर्ण प्रकार निम्नवत् हैं-
- वैयक्तिक कीमत पृथक्करण कीमत पृथक्करण को जब
वैयक्तिक आधार पर किया जाता है तब उसे वैयक्तिक कीमत पृथक्करण
कहा जाता है। इसमें कुछ ग्राहकों से ऊंची कीमत ली जाती है जबकि
अन्यों से उसी वस्तु के लिए कम कीमत मांगी जाती है। उदाहरणार्थ,
शेयरधारकों, कर्मचारियों, दोस्तों, रिश्तेदारों आदि को उत्पाद कम कीमत
पर दिये जाते हैं जबकि उसी उत्पाद के लिए अन्य ग्राहकों से अधिक
कीमत ली जाती है। - भौगोलिक कीमत पृथक्करण जब भौगोलिक स्थिति के आधार पर कीमत पृथक्करण किया जाता है तो उसे भौगोलिक कीमत
पृथक्करण कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, उत्पादन स्थल से अधिक दूर
स्थित उपभोक्ताओं को उत्पाद का विक्रय ऊंची कीमत पर किया जाता है
जबकि उत्पादन स्थल के निकटस्थ निवासी उपभोक्ताओं से उसी उत्पाद
के लिए कम कीमत ली जाती है। - उपयोग के आधार पर कीमत पृथक्करण कीमत पृथक्करण को जब उत्पाद या सेवा के उपयोग के आधार पर किया जाता है तब उसे
उपयोग के आधार पर कीमत पृथक्करण कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, औद्योगिक उपभोक्ताओं को ऊंची दर पर विद्युत आपूर्ति की जाती है।
जबकि घरेलू उपभोक्ताओं को निम्न दर पर। - समूहवार कीमत पृथक्करण कीमत पृथक्करण को जबउपभोक्ताओं के समूह के आधार पर किया जाता है तब उसे समूहवार
कीमत पृथक्करण कहा जाता है। कीमत पृथक्करण के इस प्रकार के
अन्तर्गत उत्पाद के सभी उपभोक्ताओं को समूहवार विभक्त कर लिया
जाता है और उनके समूहों के आधार पर उन्हें भिन्न-भिन्न कीमतों पर उसी
उत्पाद का विक्रय किया जाता है। - समय के आधार पर कीमत पृथक्करण जब किसी उत्पाद या सेवा के उपयोग के समय के आधार पर भिन्न-भिन्न कीमतें ली जाती
हैं तब उसे समय के आधार पर कीमत पृथक्करण कहा जाता है। उदाहरण
के लिए टेलीफोन के दिन या रात में उपयोग किए जाने पर उसकी भिन्न-भिन्न दरें वसूली जाती हैं। - सुविधाओं के आधार पर कीमत पृथक्करण जब किसी उत्पाद के साथ दी जाने वाली सुविधाओं के आधार पर कीमत पृथक्करण
किया जाता है जब उसे सुविधाओं के आधार पर कीमत पृथक्करण कहा
जाता है। उदाहरणस्वरूप रेलवे द्वारा द्वितीय दर्जे, प्रथम दर्जे, एयरकंडीशन्ड
दर्जे से यात्रा के लिए भिन्न-भिन्न किराए वसूले जाते हैं। - डिस्काउन्ट प्रस्ताव द्वारा कीमत पृथक्करण कीमत पृथक्करण
को कभी-कभी प्रत्यक्षतया नहीं किया जाता। इसके लिए कुछ क्रेताओं को
कुछ डिस्काउन्ट के रूप में किया जाता है। यह डिस्काउन्ट या तो नगद रूप
में या व्यापारिक छूट के रूप में अथवा वितरक डिस्काउन्ट आदि के रूप में दिया जाता है।
कीमत पृथक्करण की आवश्यक शर्तें
कीमत पृथक्करण वह नीति है जो किसी विनिर्माता या विक्रेता
द्वारा विभिन्न क्रेताओं को विभिन्न दरों पर उत्पाद के विक्रय के लिए
अपनाई जाती है। यह तभी सफल हो सकता है जब कुछ शर्तों को संतुष्ट
किया जा सके। ये शर्तें निम्नवत् है
- एकाधिकारी स्थिति – कीमत पृथक्करण के संतुष्ट की जाने वाली सर्वप्रथम शर्त यह है कि बाजार में एकाधिकारी स्थिति होनी चाहिए। परिपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत कीमत पृथक्करण सफल हो ही नहीं
सकता। - प्रतिस्पर्धियों से सहमति कीमत पृथक्करण तभी सफल हो
सकता है जब सभी प्रतिस्पर्धियों के बीच कीमत पृथक्करण के संबंध में
सहमति हो। - आदेशों पर विक्रय कीमत पृथक्करण को तभी आसानी और प्रभावी रूप से अपनाया और कार्यान्वित किया जा सकता है जब
किसी विनिर्माता द्वारा केवल एक आदेश के लिए माल तैयार किया जाए।
इस मामले में उसके द्वारा विभिन्न क्रेताओं से सहजतापूर्वक विभिन्न
कीमत वसूली जा सकती है। - उपभोक्ताओं की अज्ञानता कीमत पृथक्करण के लिए
संतुष्ट की जाने वाली एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि उपभोक्ताओं को
कीमत पृथक्करण के संबंध में परिपूर्ण ज्ञान न हो। यदि उन्हें मूल्य
विभेदीकरण का पूर्ण ज्ञान हो तो वे इसका विरोध करेंगे। - विभिन्न बाजारों के मांग के लचीलेपन में भेद कीमत पृथक्करण तभी सफल हो सकता है जब विभिन्न बाजारों में किसी वस्तु की मांग के लचीलेपन में पृथकता की स्थिति बनी हुई हो। ऐसे मामले में
विनिर्माता द्वारा उस बाजार से सापेक्षिक तौर पर अपने उत्पाद की ऊंची
कीमत वसूली जा सकती है जहां पर उत्पाद की मांग में अपेक्षाकृत तौर
पर गैर लचीलापन हो और ऐसे बाजार में उस उत्पाद की अपेक्षित तौर पर
कम कीमत वसूली जा सकती है जहाँ उसकी मांग में लचीलापन हो । - क्रेताओं की खरीद शक्ति में विभिन्नता क्रेताओं की खरीद
शक्ति में यदि विभिन्नता हो तो कीमत पृथक्करण की नीति को सफलतापूर्वक
अपनाया जा सकता है। किसी एक ही उत्पाद को यदि विभिन्न आय समूह
वाले क्रेताओं द्वारा खरीदा जाता है तो विनिर्माता अथवा विक्रेता द्वारा ऊंची
आय समूह के उपभोक्ताओं से अपने उत्पाद के लिए ऊंची कीमत वसूली जा
सकती है जबकि निम्न आय समूह वाले उपभोक्ताओं पर उसी उत्पाद के
लिए कम कीमत प्रभावित की जा सकती है। - उत्पाद की प्रकृति
कीमत पृथक्करण की नीति में उत्पाद
की प्रकृति की भी महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती है। किसी भी विनिर्माता
या विक्रेता के लिए यह बात सलाहयोग्य नहीं है कि उसके द्वारा दिन
प्रतिदिन के नैमितितक उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं के मामले में
आरामदेह वस्तुओं और सेवाओं के मामले में प्रयुक्त किया जा सकता है।
कीमत पृथक्करण की नीति अपनाई जाए। तथापि, इसे सुविधाजनक और - भौगोलिक दूरी कीमत पृथक्करण को उस स्थिति में अपनाया जा सकता है जहाँ क्रेताओं की भौगोलिक स्थिति में भिन्नता हो। ऐसी स्थिति में विनिर्माता द्वारा उन क्रेताओं से उच्चतर कीमत वसूली
जा सकती है जो उत्पादन स्थल से काफी दूर के हो और उन क्रेताओं से
निम्न कीमत ली जा सकती है जो उत्पादन स्थल से निकटस्थ के हो। - क्रेताओं की अतार्किक भावनाएं आमतौर पर इसे देखा
- सुना गया है कि क्रेताओं की सोच में जाने क्यों ऐसी सोच बन जाया
करती है कि कम कीमत वाली वस्तु की तुलना में ऊंची कीमत वाली वस्तु बेहतर हुआ करती है। कीमत पृथक्करण द्वारा क्रेताओं की अतार्किक
सोच का लाभ उठाया जा सकता है।
- सरकारी नीति कभी-कभी स्वयं सरकार द्वारा ही इस कीमत पृथक्करण को अपनाया जाता है। उदाहरणस्वरूप, हमारे देश की राशन दुकानों में शक्कर की कीमत विभिन्न दुकानों में पृथक-पृथक हुआ करती है। इसी तरह, विद्युत की दर भी औद्योगिक उपभोक्ताओं और घरेलू
उपभोक्ताओं के लिए भिन्न-भिन्न हुआ करती है। फिर टेलिफोन और तार
की रात-दिन की सेवाओं की दरों में भी इसी पृथक्करण की नीति का
बोलबाला है।