एकाधिकार के प्रकार

औद्योगिक क्षेत्रों में एकाधिकार के निम्नवत् विभिन्न प्रकार हो सकते हैं.

(1) प्राकृतिक एकाधिकार- किसी वस्तु की आपूर्ति यदि
किसी एक क्षेत्र में ही सीमित रहे तो वैसे एकाधिकार को ‘प्राकृतिक’ एकाधिकार के में जाना जाता है। उदाहरणस्वरूप, बांग्लादेश के पास कच्चे जूट का एकाधिकार है तो भारत के पास मेंगनीज का एकाधिकारं है।

2.उत्पादित करने का विधिसम्मत अधिकार किसी फर्म को दिया जाता है तो उसे विधिसम्मत एकाधिकार के रूप में जाना जाता है। उदाहरणस्वरूप,नोट-जारी करने का अधिकार कानून द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को प्रदान किया गया है और इसलिए यह ‘विधिसम्मत अधिकार है।

3.जन- एकाधिकार – किसी एकाधिकार की सृष्टि जब जनहित में की जाती है तब उसे जन-एकाधिकारी के रूप में जाना जाता है। उदाहरणस्वरूप जलापूर्ति, विद्युत, टेलिफोन, रेलवे आदि जनएकाधिकार हैं। इन्हें अक्सर ‘कल्याण- एकाधिकार’ भी कहा जाता है।

(4) निजी एकाधिकार- इसे निजी व्यक्तियों या संगठनों द्वारा अपनी मालिकाना हैसियत में संचालित किया जाता है। जिसका उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करने का होता है। इन एकाधिकारों को निम्नवत् रूप से और भी वर्गीकृत किया जा

(i) साधारण एकाधिकार

(ii) विभेदकारी एकाधिकार

इनमें से साधारण एकाधिकार में अपने उत्पाद के लिये सभी उपभोक्ताओं से एक समान कीमत ही प्रभारित की जाती है जबकि दूसरी ओर विभेदकारी एकाधिकार के अंतर्गत विभिन्न उपभोक्ताओं और ग्राहकों से उसी उत्पाद के लिए अलग-अलग कीमतें ली जाती हैं।

एकाधिकार का उभार और उसकी धारणाएं

किसी एकाधिकारी का अपने उत्पाद की मांग पर कोई नियंत्रण नहीं होता किन्तु वह उत्पाद की आपूर्ति को नियंत्रित कर सकता है। एकाधिकारी को यह निर्धारित करने की शक्ति होती है कि या तो

(i) उत्पाद की कीमत क्या हो या फिर

(ii) बाजार में विक्रय की जाने वाली उसकी मात्रा क्या हो। वह दोनों का ही निर्धारण कर सकता है क्योंकि उसके द्वारा

मांग को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अतएव एकाधिकारवादी फ
की मुख्य धारणा यह होती है कि मांग वक्र जब नीचे की ओर ढलता
तो अधिक विक्रय कर पाने के लिये उसे कीमत में कमी करनी चाहिए
यह भी कि माग वक्र जब नीचे की तरफ बाए से दाए और ढल त
सीमात राजस्व तो कीमत के समरूप नहीं रह पाता। तब यह AR वक्र =
नीचे होगा। जबकि परिपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म का मांग व
क्षैतिजीय रेखा के रूप में होगा।

  • अतएव एकाधिकारवादी जब उस कीमत का निर्धारण करे जिस
    विक्रय करने के लिए वह तत्पर होगा तब मांग वक्र द्वारा मात्रा को निर्धारि
    किया जाएगा जिसे कि उस कीमत पर विक्रय किया जाना हो। यदि बाजा
    को वह प्रतिमास एक निर्दिष्ट मात्रा का दिया जाना निर्धारित करे तब म
    वक्र द्वारा वह कीमत तय की जाएगी जिसे वह उक्त मात्रा का विक्रय कर
    चाहे। एकाधिकारी द्वारा यदि बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता है तो कीम
    कम होगी और लाभार्जन भी कम होगा। इसलिए, एकाधिकारी द्वारा इनमें
    किसी भी नीति का अनुसरण नहीं किया जाएगा। वह अपने आउटपुट
    स्थिरीकरण इस प्रकार करेगा कि उसे निवल लाभों से अधिकतम संभा निवल राजस्व की प्राप्ति हो सके।

एकाधिकार के अंतर्गत कीमत निर्धारण

क्रेताओं और विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता के आधार बाजार का वर्गीकरण किया जाता है।

एकाधिकार भी बाजार का महत्वपूर्ण रूप होता है। इसलिए, यह ज्ञात होना भी महत्वपूर्ण है एकाधिकार में कीमत का निर्धारण कैसे किया जाता है?

एकाधिकारी का मुख्य उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम कर है। इस संबंध में यह ध्यान में रखा जाना आवश्यक है कि एकाधिकार हमेशा अपने कुल लाभ को अधिकतम करने में रूचि रखता है न इकाईवार लाभ हो। एकाधिकार के अंतर्गत कीमत निर्धारण

यद्यपि वस्तु की आपूर्ति पर एकाधिकारी द्वारा कुल नियंत्र बनाए रखा जाता है फिर भी मांग पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होत इसीलिये उसके द्वारा कीमत और मात्रा को मिलाकर निर्धारण नहीं कि जा सकता। एक बार में वह इन दो में से किसी एक पर ही निर्णय सकता है, अर्थात या तो वस्तु की कीमत पर या फिर वस्तु की आपू पर। उसके द्वारा यदि आपूर्ति की मात्रा निर्धारित करनी होगी। इस विपरीत वह यदि निर्णय लेकर कीमत का निर्धारण करता है तब मांग दृष्टिगत रखते हुए उसे आपूर्ति की मात्रा के संबंध में निर्णय लेना होग साधारणतया एकाधिकारी द्वारा कीमत पर निर्णय लिया जाता है, मात्रा को निर्धारित कर सकता है।

इस एकाधिकारवादी प्रणाली में कीमत निर्धारण का अध्ययन निम्नवत दो वर्गों में विभक्त करके किया जा सकता है –

1.अल्पावधि में कीमत निर्धारण और

2.दीर्घावधि में कीमत निर्धारण

अल्पावधि में कीमत निर्धारण

एकाधिकार में अल्पावधि के लिये कीमत निर्धारण की दो विधि

1.कुल राजस्व और कुल लागत विधि तथा
2.सीमांत राजस्व और सीमांत लागत विधि।

(i) कुल राजस्व और कुल लागत विधि – एकाधिकारी मुख्य उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम बनाना होता है। इसलिये, इन् विधि के अन्तर्गत कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर किया जाता है पर कुल राजस्व (TR) और कुल लागत (TC) के बीच भिन्नता अधिकत हो।

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