व्यापार चक्र के कुछ व्यक्तिगत प्रभाव सकारात्मक होते हैं।
फैलाव और समृद्धि के दौर में भाव बढ़ते हैं, विक्रय मूल्य लागत की तुलना में तेजी से बढ़ता है और लाभ भी बढ़ जाता है, लेकिन शीघ्र ही व्यापारी को पता चलता है कि उसके पास ऑर्डर कम आने लगे हैं। उपभोक्ता वह सामान ही नहीं ले रहे हैं, जिसका कि उन्होंने ऑर्डर दिया
था। भाव भारी मुश्किल से संभाले जा रहे हैं। इधर राजस्व प्राप्ति कम हो रही है, उधर बैंक और अन्य साहूकार ऋण जमा करने पर जोर दे रहे हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए व्यापारी अपना सामान कम दाम पर घाटे में बेचने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि एक औसत व्यापारिक संस्था को व्यापार चक्र के दुष्प्रभावों का सामना किस प्रकार करना पड़ता है।
व्यापार चक्र के सिद्धान्त
व्यापार चक्र आर्थिक गतिविधियों में उच्चावचनों की एक श्रृंखला होते हैं। वे घटनाओं की एक श्रृंखला होते हैं जो व्यावसायिक तथा औद्योगिक संस्थानों की गतिविधियों में नियमित तथा प्रायः उपस्थित होती हैं। व्यापार चक्रों के कारणों को स्पष्ट करने के लिए समय-समय पर
विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा विभिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं। इन सिद्धान्तों को निम्न में वर्गीकृत किया जा सकता है-(1) गैर-मौद्रिक
सिद्धान्त (II) मौद्रिक सिद्धान्त।
[I] गैर मौद्रिक सिद्धान्त
(1) जलवायु सिद्धान्त या सन-स्पॉट सिद्धान्त : विलियम
स्टेनले जैवन्स का यह विचार था कि व्यापार चक्र, उन धब्बों से संबंधित होते हैं जो हर 10-11 वर्षों में सूरज पर प्रकट होते हैं। ये धब्बे सूर्य की गर्मी की तीव्रता तथा दिशा को प्रभावित करते हैं जो इनकी बारी में जलवायु में परिवर्तन कारित करते हैं। यदि इन परिवर्तनों का परिणाम वर्षा के गिरने का होता है, तब फसली पर एक प्रतिकूल प्रभाव होता है जो उद्योगों के लिए भी रुकावट कारित करता है। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में अवसाद होता है। इसके विपरीत यदि जलवायु में परिवर्तनों
का परिणामक अच्छी वर्षा होता है तब इसका कृषि पर अनुकूल प्रभाव होता है। किसान अच्छी फसलों को पाते हैं जो उद्योगों के विकास में भी सहायता करता है। अर्थव्यवस्था में पुनरुत्थान की दशा पा ली जाती है.
जो धीरे-धीरे समृद्धता की दशा में परिवर्तित होती है। जलवायु के ये परिवर्तन भी चक्रीय होते हैं तथा व्यापार चक्र कारित करते हैं।
जलवायु सिद्धान्त की आलोचना :
1.यदि सूर्य के धब्बे जलवायु परिवर्तन का कारण है, तब विश्व के सभी देशों की फसलों पर प्रभाव समान होना चाहिए, लेकिन व्यावहारिक रूप से ऐसा कभी नहीं होता।
2.जलवायु परिवर्तन अकेले व्यापार चक्रों की सभी दशाओं को स्पष्ट करने हेतु पर्याप्त नहीं होते।
3.यदि जलवायु परिवर्तन व्यापार चक्रों के कारण है, तब विश्व के औद्योगिक देशों में कोई व्यापार चक्र नहीं होने चाहिए लेकिन इतिहास दिखाता है कि व्यापार चक्र औद्योगिक देशों में उपस्थित होते हैं।
(2) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त प्रोफेसर ए.सी. पीगू के अनुसार, व्यापार चक्र उद्यमियों के मनोविज्ञान में परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होते हैं। आशावादिता तथा निराशा की भावनाएं उद्यमियों के मस्तिष्कों तथा हृदयों में विकसित होती हैं तथा पापार चक्रों को कारित करती है। जब
बड़े व्यवसायी उनके व्यवसाय के प्रति आशावादी होते हैं तथा विकास एवं चमकदार भविष्य की तरफ देखते हैं, तब पुनरुत्थान की दशा प्रारंभ होती है जिससे क्रमशः समृद्धता की दशा प्राप्त होती है। वे उनके व्यवसाय में अतिरिक्त निवेश करते हैं तथा उनकी गतिविधियों को
विस्तारित करने में ज्यादा रुचि लेते हैं। छोटे व्यवसायी उनके पीछे आते हैं।
यह सिद्धान्त मानता है कि जलवायु परिवर्तन कृषि उत्पादन मेंपरिवर्तनों के एकमात्र कारण होते हैं। यह सुधरे बीजों, उर्वरकों, रसायनों, सिंचाई सुविधाओं तथा कृषि उपकरणों के कृषि उत्पादन को बढ़ाने में भूमिका की अवहेलना करता है।
इसके विपरीत, यदि बड़े व्यवसायी उनके व्यवसाय के प्रति
निराश हैं, तब अवसाद की दशा प्रारंभ होती है तथा इससे मंदी की दशा प्राप्त होती है। व्यवसायी उनके निवेशों को निकालना प्रारंभ कर देते हैं तथा व्यावसायिक गतिविधियों के विकास तथा विस्तार में ज्यादा रुचि नहीं लेते। अतः उत्पादन, आय तथा रोजगार के स्तर में कमी होती है।
मनोवैज्ञानिक परिवर्तन चक्रीय होते हैं तथा व्यापार चक्रों को कारित करते हैं।
मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त की आलोचनाएं :
यह उन कारकों का वर्णन नहीं करता जो व्यवसायी के मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं। अतः यह अपूर्ण है।
यह इस मान्यता पर आधारित है कि आशा तथा निराशा की
भावनाएं व्यवसायियों के दिमागों तथा हृदयों में उपस्थित होती है, लेकिन यह यह वर्णन नहीं करता कि ऐसा क्यों होता है।
अतः यह सिद्धान्त अपूर्ण है।
यह व्यापार चक्रों की एक दशा को दूसरी दशा में बदलने की प्रक्रिया का वर्णन नहीं करता आशावादिता तथा निराशावादिता की भावनाएं व्यापार चक्रों का
एक महत्त्वपूर्ण कारण हो सकती हैं लेकिन वे व्यापार चक्रों का एकमात्र कारण नहीं हो सकतीं। क्योंकि यह सिद्धान्त व्यापार चक्रों के अन्य कारणों को स्पष्ट नहीं करता, अतः यह अपूर्ण है।
(3) आधिक्य-बचत सिद्धान्त : प्रोफेसर होबसन द्वारा प्रतिपादित, यह सिद्धान्त अल्प-उपभोग के सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है। प्रोफेसर होबसन के अनुसार, व्यापार चक्र राष्ट्रीय आय के असमान वितरण के कारण उत्पन्न होते हैं। अमीर तथा गरीब के बीच में आय के
वितरण में विस्तृत असमानताएं होती हैं। अमीर लोग कुल आय का एक प्रमुख हिस्सा पाते हैं जो उनके उपभोग के लिए उनके द्वारा जरूरी से