व्यापार चक्रों का अर्थ 

विश्व ने विशेषकर पिछले 150 वर्षों के दौरान शानदार आर्थिक प्रगति पाई है। लेकिन यह सोचना गलत होगा कि यह आर्थिक प्रगति एक स्थिर अपवर्ड स्विंग तथा आगे की तरफ एक निरंतर प्रवाह रही है। 

दूसरी तरफ, हर व्यापारी यह जानता है कि दस या बारह वर्षों बाद, व्यवसाय एक कठोर शॉक पाता है जो इसे कई वर्षों के लिए पटरी से उतार देता है। व्यवसाय में अपवर्ड स्विंग होते हैं एवं तब डाउनवर्ड स्विंग होते हैं। व्यावसायिक समृद्धता की अवधियों के विकल्प में प्रतिकूलता की अवधियाँ आती हैं। हर प्रगति के बाद गिरावट आती है तथा इसका विपरीत तभी सत्य है। यह व्यापार चक्र होता है। व्यापार चक्र का अर्थ सिर्फ व्यापारिक या व्यावसायिक गतिविधि के पूरे रास्ते हैं जो समृद्धता तथा प्रतिकूलता की सभी दशाओं से गुजरता है।

व्यापार चक्र प्रमुख लक्षण

1.सभी चक्रों में चरण और उनका क्रम वही रहता है।

3.मंदी आने में जितना समय लगता है उससे दो गुना समय समृद्धि आने में लगता है।

4.प्रत्येक व्यापार चक्र के दौरान भाव-स्तर में चक्रीय क्रम में

परिवर्तन आता है।

5.सामान्यतः एक चक्र की अवधि 3 से 4 साल की होती है तथा इसे ‘लघु चक्र’ कहा जाता है। बड़े चक्रों के बीच 6 से 12 साल का अंतराल होता है।

सबसे पहले स्टॉक और शेयरों के भावों में परिवर्तन आता है फिर थोक भाव और उत्पादन आकार में परिवर्तन आता है।

सामान्यतः समृद्धि और मंदी दोनों दौर में खेरची भाव थोकभाव के पीछे चलते हैं।

एक व्यापारिक चक्र की दशाएं

आइये एक व्यापार चक्र की दशाओं या रास्ते को संक्षेप में जानें।

(1) अवसाद हम एक ऐसे बिन्दु पर प्रारंभ कर सकते हैं जब व्यवसाय इसके सबसे नीचे स्तर है तथा चारों तरफ अवसाद उपस्थित है। भाग्यशाली लोग जो रोजगार में हैं, वे कष्टदायक रूप से निम्न मजदूरियाँ पाते हैं। मुद्रा की क्रय शक्ति ऊंची हैं पर मानव की नीची हैं। समुदाय की सामान्य क्रय शक्ति बहुत नीची होने से, उपभोक्ता वस्तुओं तथा उत्पादक वस्तुओं दोनों, विशेषकर उत्पादक वस्तुओं के उत्पादन में, उत्पादन क्षमता के बहुत निम्न स्तर पर होती है। व्यवसाय एक नए साम्य पर स्थित हो जाता है जो मूल्यों, लागत तथा लाभों का एक निम्न स्तर है। यह नया समायोजन या साम्य कुछ वर्षों तक रह सकता है। अत: अवसाद के प्रमुख लक्षण हैं:

(i) उत्पादन तथा व्यापार की मात्रा सिकुड़ती है, 

(ii) बेरोजगारी अतः समुदाय की आय एक बहुत निम्न स्तर पर आ जाती है. 

(v) कुल व्यय तथा प्रभावी माँग गिर जाती है,

(vi) समग्र निराशावाद समुदाय में

फैला होता है, 

(vii) साख का सामान्य संकुचन होता है व निवेश करने के

अंशों तथा प्रतिभूतियों के मूल्य एक बहुत निम्न स्तर पर गिर गए हैं, 

(ix) पूरी अर्थव्यवस्था में जोखिमों को उठाने की एक मजबूत अनिच्छा होगी, 

(x) ब्याज दरें चारों तरफ गिरती है, 

(xi) व्यावहारिक तौर पर सारी निर्माण गतिविधि भले ही मशीनरी में हो या भवनों में रुक जाती है। 

संक्षेप में, अवसाद अवधि कुल आर्थिक गतिविधि के इसके

बॉटम पर आ जाने द्वारा लक्षणित होती है।

(2) पुनरुत्थान लेकिन चीजें हमेशा के लिए अवसाद स्थिति में रहने वाली नहीं हैं। अवसाद के कुछ समय तक रहने के बाद, व्यावसायिक क्षेत्र पर उम्मीद की किरणें प्रकट होती हैं। निराशावाद की जगह आशावाद आता है। अवसाद में स्वयं पुनरुत्थान के बीज समाहित होते हैं।

प्रायः पुनरुत्थान पूँजीगत वस्तुओं के लिए माँग के पुनर्जीवन से प्रारंभ होता है। इस बढ़ी माँग को पूरा करने के लिए पूँजीगत वस्तुओं में निवेश तथा रोजगार बढ़ता है। बढ़ी माँग सामान्य माँग को बढ़ा देती है

जिससे मूल्यों, लाभ में वृद्धि और निवेश, रोजगार तथा आय में वृद्धि होती है। एक बार जब विस्तारात्मक मूवमेंट शुरू होता है, यह इस तरह गति एकत्रित करता है।

पुनर्जीवन अवधि के दौरान रोजगार, आउटपुट तथा आय के स्तर धीरे-धीरे तथा लगातार बढ़ते हैं। स्कंध विपणियाँ इस अवधि के दौरान ज्यादा संवेदनशील हो जाती है। स्कंध विपणि में तेजी का वातावरण उपस्थित होगा। स्कंध बाजारों में वृद्धि विस्तार का समर्थन करती है तथा

पुनर्जीवन को गति प्रदान करती है। उद्यमियों की उम्मीदें सुधर जाती हैं तथा व्यावसायिक आशावादिता विकसित होती है। विनियोग गतिविधि तेज होती है। बैंकों के ऋण तथा साख के लिए माँग बढ़ना शुरू हो जाते

हैं। पुनरुत्थान की लहर एक बार प्रारंभ होने पर स्वयं को पोषित करती है।

अतः पुनरुत्थान अवधि के दौरान विस्तारात्मक प्रक्रिया स्व-

पुनर्बलनीय होगी तथा यदि यह कुछ समय तक जारी रहती है, तब अर्थव्यवस्था स्वयं को आय, आउटपुट तथा रोजगार के बढ़ते स्तर की स्थिति में पाएगी।

(3) उत्कर्ष : एक बार प्रारंभ पुनरुत्थान गति पकड़ता है।

पुनरुत्थान का मामूली प्रवाह, जब यह प्रवाहित होना प्रारंभ हो जाता है, वह इसके रास्ते में कई सहायकों द्वारा मजबूत होता है। एक उद्योग में निवेश के पुनर्जीवन से अन्य में पुनर्जीवन होता है। एक उद्योग में श्रमिकों को भुगतान की गई मजदूरियाँ अन्य द्वारा उत्पादित वस्तुओं के लिए माँग

निर्मित करती है। माँग के सामान्य पुनर्जीवन के साथ मूल्य एक ऊपर की तरफ प्रवृत्ति को दिखाते हैं। व्यवसायी की आय आगे की तरफ उछलती है जबकि मजदूरियाँ, ब्याज तथा अन्य आयें पीछे रह जाती है। अतः लाभ मार्जिन्स बढ़ जाते हैं। आशावादिता बढ़ती है तथा चारों तरफ फैल

जाती है। बैंक्स जानते हैं कि लाभ हो रहे हैं तथा वे अग्रिमों को देने में संकोच नहीं करते। साख विस्तारित होता है, व्यवसायी ऋण लेते हैं तथा व्यवसाय में और गहरे उतर जाते हैं जब तक लाभ की उम्मीद की गई दर

ब्याज की मौजूदा दर से ज्यादा होती है। उत्कृष्ट व्यावसायिक समृद्धता उनके दिमागों को खराब कर देती है तथा वे ओवरट्रेडिंग में लग जाते हैं।

हर कोई पैसा बनाने में बुरी तरह से व्यस्त हो जाता है। व्यापार चक्र की इस दशा को उत्कर्ष के रूप में जाना जाता है तथा यह अवसाद की तरह कई वर्षों तक चल सकती है।

अतः एक उत्कर्ष के साधारण लक्षण है:

(i) उत्पादन तथा व्यापार की एक बड़ी मात्रा, 

(ii) रोजगार का एक उच्च स्तर तथा बहुत सी श्रम गतिशीलता को संभव करने के लिए पर्याप्त मात्रा में जॉब अवसर- क्षैतिज के साथ-साथ लम्बवत रूप से.

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