परिपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत कीमत निर्धारण

परिपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत कीमत निर्धारण

बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। परिपूर्ण प्रतियोगिता को बाजार का काफी महत्वपूर्ण रूप माना जाता है। इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि परिपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत अल्पावधि और दीर्घगामी में कीमत का

परिपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति के आधार पर उसकी कीमत निर्धारित हुआ करती है। प्रो. मार्शल ने इस संबंध में बताया है कि जिस तरह किसी कपड़े को काटने के लिये कैंची के दोनों फलकों की आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह किसी वस्तु की कीमत को निर्धारित किए जाने के लिए उसकी मांग और आपूर्ति दोनों ही तत्वों की अनिवार्यता हुआ करती है। किसी वस्तु की कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित हुआ करती है जिस पर मांग और आपूर्ति समान हुआ करती है। इस कीमत को समतुल्य कीमत के रूप में मांग और आपूर्ति को समतुल्य मात्रा के रूप में जाना जाता है।

परिवर्तनशील मांग की परिस्थितियों के साथ आपूर्ति की परिस्थिति द्वारा अपने को समायोजित करने में लगने वाले समय पर कीमत निर्धारित, कीमत स्तर और उसमें विभिन्नता का स्वरूप निर्भर हुआ करता है। परिपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत कीमत निर्धारण का विश्लेषण दो भिन्न कालखंड़ों में किया जाता है –

1.अल्पगामी और

2.दीर्घगामी

परिपूर्ण प्रतियोगी बाजार के इन दो प्रकारों में कीमत निर्धारण को यहां निम्नवत् रूप से वर्णित किया गया है।

अल्पगामी में कीमत तो अपने अल्पगामी परिभाषा के अनुसार वह कालावधि है जिसमें फर्मों न आकार में परिवर्तन कर सकती हैं न ही चली जा सकती हैं और नई फर्मे भी उद्योग में प्रवेश नहीं कर सकतीं। एक ओर जहाँ बाजार अवधि अत्यंत अल्पावधि) में आपूर्ति संपूर्णतया स्थिर होती है, वहीं दूसरी अल्पगामी में परिवर्तक इनपुटों वृद्धि द्वारा आपूर्ति में वृद्धि करना या ओर संभव है।

वस्तु की मांग – उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की मांग की जाती है। उसकी उपयोगिता के कारण वे उसी मांग किया करते हैं। उपभोक्ताओं द्वारा कम कीमत पर अधिक मात्रा और उच्चतर कीमत पर कम मात्रा मांग की जाती है। इस तरह विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा किसी वस्तु की भिन्न-भिन्न मात्राओं में मांग की जाती है।

परिपूर्ण प्रतियोगिता दीर्घावधि में
कीमत निर्धारण

दीर्घावधि के दौरान प्रत्येक उत्पादक की फर्म को इतना समय उपलब्ध रहता है कि उत्पादन के साधन स्त्रोतों में परिवर्तनों के द्वारा वह उत्पादन की मात्रा या आकार में भी परिवर्तन कर सकता है। इस कालावधि में फर्म और उद्योग द्वारा केवल सामान्य लाभ ही पाया जा सकता है।

परिपूर्ण प्रतियोगिता की दीर्घावधि में फर्म और उद्योग की समतुल्यता – इस अवधि में फर्म और उद्योग द्वारा समतुल्यता की स्थिति में केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त किया जा सकता है। इस परिस्थिति में सीमांत राजस्व और सीमांत लागत एक समान होते हैं, राजस्व और औसत राजस्व भी समान ही हुआ करते हैं। इस स्थिति को संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है जिसमें विविध रेखाएं या वक्र निम्नवत् सूचना
का प्रतिनिधत्व करते हैं

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